tho gazlein
तीन
आज तो मन अनमना गाता नहीं
खुद बहल औरों को बहलाता नहीं
आदमी मिलना बहुत मुश्किल हुआ
और मिलता है तो रह पाता नहीं
गलतियों पर गलतियाँ करते सभी
गलतियों पर कोई पछताता नहीं
दूसरों के नंगपन पर आँख है
दूसरों की आँख सह पाता नहीं
मालियों की भीड़ तो हर ओर है
किंतु कोई फूल गंधाता नहीं
सामने है रास्ता सबके मगर
रास्ता तो खुद कहीं जाता नहीं
धमनियों में खून के बदले धुआँ
हड्डियाँ क्यों कोई दहकाता नहीं
चार
हमने खुद को नकार कर देखा
आप अपने से हार कर देखा
जब भी आकाश हो गया बहरा
खुद में खुद को पुकार कर देखा
उनका निर्माण-शिल्प भी हमने
अपना खंडहर बुहार कर देखा
लोग पानी से गुज़रते हमने
सिर से पानी गुजार कर देखा
हमने इस तौर मुखौटे देखे
अपना चेहरा उतार कर देखा
2 Comments:
शेर सिंह जी , अच्छी बात है कि आपने मेरे ब्लाग "वाटिका" से अच्छी ग़ज़लों को लेकर पुन: लगाया और सभी को भेजा। पर भाई ग़ज़लकार के नाम अर्थात राम कुमार कृषक जी के नाम का उल्लेख इन दोनों ग़ज़लों में ना पाकर दुख हुआ और शंका भी हुई। भाई कहां से ली गई हैं, इसका उल्लेख नहीं किया तो कम से कम ग़ज़लकार का नाम तो देते।
अगर आपने ग़ज़लें उठानी ही थीं तो सही ढ़ंग से उठाते। शीर्षक दे रहे हैं दो ग़ज़लें और क्रम वही दे रहे हैं जो मेरे ब्लाग "वाटिका" में है- यानी 'तीन' और 'चार'। ग़ज़लकार का नाम न होने से पाठकों में यह भ्रम तो जाएगा ही कि ये ग़ज़लें शेर सिंह ने पोस्ट की हैं, उन्हीं की होंगी। यह आपत्तिजनक है। पुन: ऐसा प्रयास न करें और यदि आप किन्हीं अच्छी रचनाओं को अपने ब्लाग के माध्यम से पुन: पोस्ट करके अपने पाठ्कों तक पहुंचाना चाहते हैं तो उस ब्लाग के नाम का उल्लेख करें और रचनाकार का नाम तो अवश्य ही दें।
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