EK GAZAL
Tuesday, May 20, 2008
दस ग़ज़लें – रामकुमार कृषक
इस पोस्ट के सभी चित्र : अवधेश मिश्र
एक
चेहरे तो मायूस मुखौटों पर मुस्कानें दुनिया की
शो-केसों में सजी हुईं खाली दुकानें दुनिया की
यों तो जीवन के कालिज में हमने भी कम नहीं पढ़ा
फिर भी सीख न पाए हम कुछ खास जुबानें दुनिया की
हमने आँखें आसमान में रख दीं खुल कर देखेंगे
कंधों से कंधों पर लेकिन हुईं उड़ानें दुनिया की
इन्क़लाब के कारण हमने जमकर ज़िन्दाबाद किया
पड़ीं भांजनी तलवारों के भ्रम में म्यानें दुनिया की
हमने जो भी किया समझवालों को समझ नहीं आया
खुद पर तेल छिड़ककर निकले आग बुझाने दुनिया की
बड़े-बड़े दिग्गज राहों पर सूँड घुमाते घूम रहे
अपनी ही हस्ती पहचानें या पहचानें दुनिया की
फूट पसीना रोआँ-रोआँ हम पर हँसता कहता है
क्या खुद को ही दफनाने को खोदीं खानें दुनिया की
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