VYANGATMAK DOHE
दोहों में व्यंग्य
मैंने पूछा (NETA BOLA) साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।
कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल।
सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।।
जीव मारना पाप है कहते हैं सब लोग।
मच्छर का फिर क्या करें फैलाता जो रोग।।
दुखित गधे ने एक दिन छोड़ दिया सब काम।
ग़लती करता आदमी लेता मेरा नाम।।
बीन बजाए नेवला साँप भला क्यों आय।
जगी न अब तक चेतना भैंस लगी पगुराय।।
नहीं मिलेगी चाकरी नहीं मिलेगा काम।
न पंछी बन पाओगे होगा अजगर नाम।।
गया रेल में बैठकर शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिए यही व्यवस्था ख़ास।।
रचना छपने के लिए भेजे पत्र अनेक।
संपादक ने फाड़कर दिखला दिया विवेक।।
24 जून 2006
1 Comments:
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