Wednesday, June 11, 2008

SADA JIVAN UCHCH VICHAR, JANTA KE KHARCHE PER

सादा जीवन, उच्च विचार
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06 जून 2008

व्यंग्य

जुगनू शारदेय

यूं कि यह तो बताने की बात नहीं। पर बता दिया भी जाए तो कोई बात नहीं। यूं तो यह सब जानते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री कितने सादगी पसंद इंसान हैं। अपनी सादगी के कारण ही तो वह प्रधानमंत्री बने। वरना कोई बन पाता है इतनी आसानी से प्रधानमंत्री।

हमारे प्रधानमंत्री तो सादा जीवन, उच्च विचार के बहुत बढ़िया प्लास्टिक के फूल जैसे दिखते हैं। यूं कि कहने की बात नहीं कि सादा जीवन, उच्च विचार से खूब बढ़ावा मिला दिखावटी खर्चे का। यही दिखावटी खर्च ही तो खपत को बढ़ाता है। देश को तरक्की की राह पर ले जाता है। कभी स्कूटर के लिए तरसते थे। अब कार में शान से चलते हैं।

पांचवीं पास से भी तेज का संदेश, देखो एक नया मॉडल आया है। गर्ल फ्रेंड ही नहीं, पत्नी भी जरा कैटरीना कैफ हो जाती है। यूं कि अब तो यह जग जाहिर है कि अब जो लोग सादा जीवन, उच्च विचार रखते हैं, वह जनता के आदमी होते हैं।

चूंकि जनता के आदमी होते हैं, इसलिए उनकी जान पर भी बहुत खतरा होता है। उनकी हिफाजत भी सरकार ही करती है। अब किसी की जान बचाने के लिए कुछ फिजूलखर्ची तो जायज ही है न। ऐसे में उनके पास कारों का कारवां न हो तो क्या सायकिल हो।

यूं कि ऐसे में यह कहना प्रधानमंत्री का कि राज्यों के मुख्य मंत्री, उनके अपने मंत्री अपनी कारों का काफिला कम करें, कहां तक जायज है। सब सुरक्षा के लिए है। सादा जीवन, उच्च विचार का यह मतलब तो नहीं कि किसी की जान जोखिम में पड़ जाए।

खुद प्रधानमंत्री का काफिला कितना बड़ा होता है। कारों का बड़ा काफिला न हो तो कौन मानेगा कि यह जा रहे हैं सादा जीवन, उच्च विचार।

यूं कि ऐसे में यह राय देना कहां का सादा जीवन, उच्च विचार है कि मंत्री फालतू में विदेश न जाएं। आखिर देश को विकास की राह पर ले जाने के लिए प्रेरणा कहां से मिलेगी। कम से कम जितने दिन विदेश में होते हैं, उतने दिन देश का ईंधन तो बचाते हैं।

रही बात खर्चे की तो वह तो सादा जीवन, उच्च विचार की कीमत है। इतनी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। चुका रहे हैं। यूं कि यह कहने की बात तो है नहीं कि कि मंत्री और मुख्य मंत्री को विदेश जाने की अनुमति भी प्रधानमंत्री ही देता है। मुख्य मंत्री अपने राज्य में विदेशी निवेश लाने के लिए विदेश जाते हैं।

बिना विदेशी निवेश के देश का विकास नहीं हो सकता। देश का विकास तो शायद हो भी जाए पर मंत्री और मुख्य मंत्री का कैसे विकास होगा। यह भी सादा जीवन, उच्च विचार के नजरिए से ठीक नहीं कि विकास ही रुक जाए।

यूं कि कहने की बात तो है नहीं कि वह कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती, हम बंद करवाते हैं तो हो जाते हैं बदनाम। अरे बंद तो ही है असली सादा जीवन, उच्च विचार। कितनी किस्म की फिजूलखर्ची बंद हो जाती है। कितना इंधन बच जाता है। प्रधानमंत्री को देश में अखंड बंद को बढ़ावा देना चाहिए। बंद-नारा-बड़बोलापन ही तो है राजनीति की दुकान।

यूं कि यही है सादा जीवन, उच्च विचार!