Thursday, May 08, 2008

TOH KYA KAROGE

बदल लिए ज़िन्दगी ने तेवर तो क्या करोगे
जो आई क़दमों की धूल सर पर तो क्या करोगे

कभी-कभी ख़ुद में झाँक लेना दुरुस्त लेकिन
खुले न दिल के दरीचा ओ दर तो क्या करोगे

सवाल करते रहे हो लेकिन सवाल ये है
जवाब हर ईंट का हो पत्थर तो क्या करोगे

जिसे तुम अपना मुहाफ़िज़े जाँ समझ रहे हो
उसी की हो आस्तीं में ख़ंजर तो क्या करोगे

सवाल सीधा ये मेरे अपने ज़मीर से है
तुम्हारा दुश्मन हो तुम से बेहतर तो क्या करोगे

तुम अपनी बेसाएगी पे हो मुतमइन तो लेकिन
रहा न ये आस्माँ भी सर पर तो क्या करोगे

चले हो तुम जिसके पीछे दीवानावार अनवर
अगर न देखे तुम्हें वो मुड़कर तो क्या करोगे

2.
क्यूँ नज़र बदलते हो मेहरबानियों वाली
लौट के नहीं आती रुत जवानियों वाली

लोग फ़ख्र करते हैं जिनकी ख़ाकसारी पर
गुफ़्तगू नहीं की है लनतरानियों वाली

दूर तक यहाँ जब से आपकी हुकूमत है
शहरे दिल की रंगत है राजधानियों वाली

फूल जैसे होठों से बारिशें हों फूलों की
अब कहाँ रुतें ऐसी गुल्फ़िशानियों वाली

शुक्र है मोहब्बत को बख्श दी मेरे रब ने
इक ज़बाँ इशारों की बेज़बानियों वाली

झील की तहों में है जाने क्या ख़ुदा जाने
देखने में शक्लें हैं सबकी पानियों वाली

मैं उसी के साए में फूल फल गया अनवर
माँ ने जो दुआ दी थी कामरानियों वाली

2 Comments:

At 3:08 AM, Blogger Kavi Kulwant said...

bahut achche..

 
At 11:04 AM, Blogger SHER SINGH AGRAWAL said...

Thank you.

 

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