Wednesday, April 07, 2010

SOTE HAIN HAM SABHI - RAHUL UPADHYAY

agrasen

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sote - सोते हैं हम सभी

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Rahul Upadhyaya Fri, Apr 2, 2010 at 5:35 PM
To: upadhyaya@yahoo.com
(http://tinyurl.com/rahulpoems)

सोते हैं हम सभी
राहुल उपाध्याय

खोते हैं जब कभी
रोते हैं हम सभी
रटे-रटाए से
तोते हैं हम सभी

इक दिन तो होना है
पाया जो खोना है
फिर भी उदास क्यूँ
होते हैं हम सभी

जग ने ये जाना है
घर ये बेगाना है
निर्वस्त्र हो कर के
सोते हैं हम सभी

खा कर के कसमें
रहते हैं जग में
स्वछंद जीवन क्यों
खोते हैं हम सभी

टीका लगाते हैं
गंगा नहाते हैं
अपने कर्मार्थ को क्यूँ
धोते हैं हम सभी

न तो हम ईसा है
ना ही मसीहा है
सूली का बोझ क्यों
ढोते हैं हम सभी

जीवन तो चलता है
पल-पल पनपता है
जीवन के बीज को
बोते हैं हम सभी

दीपक एक बुझता है
दीपक एक जलता है
दीपक की लौ के
सोते हैं हम सभी

सिएटल । 425-445-0827
2 अप्रैल 2010
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सोता -- नदी की छोटी शाखा

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